आज कुछ अलग-सा लिख रहा हूं,
बस उसे सोच कर शब्दों को जोड़ रहा हूं,
वो लम्हे, वो बिताए हुए पलों को
बड़ी खुबसुरती से कैद कर सजा रहा हूं।
आज कुछ हसीन-सा लिख रहा हूं,
बात पहली मुलाकात की कर रहा हूं,
वो नैनों की लड़ाई, और बात-बात पर झगड़ना
और फिर प्यार से मनाना लिख रहा हूं।
आज कुछ अलग-सा लिख रहा हूं,
बात थोड़े इजहार की लिख रहा हूं,
बात थोड़े तेरे-मेरे साथ की लिख रहा हूं,
वो यादें, वो बेवजह कई वक़्त तक
साथ बैठ जानें की लिख रहा हूं,
वो वादे, वो कसमें सब याद कर
तेरे बातों को लिख रहा हूं,
आज कुछ मदहोशी-सा लिख रहा हूं।
मुलाकात, इजहार, इकरार सब लिख दिया
कलम ने मेरे,
आगे भी लिखना चाहता था पर
ये थम-सा गया बेचारा,
बात,
बात शायद बेवफाई की ये लिख ना पाया,
आज वही अधूरा-सा मुलाकात लिख रहा हूं,
आज उन्हीं ख़्वाबों को लिख रहा हूं,
जिसे लिखने से मेरा कलम भी डरता है,
और मालूम नहीं क्यूं पर ये हाथ भी लिखने वक़्त रूक-सा जाता है,
जिसे सोचकर मेरा रूह आज भी थड़ा-सा जाता है,
शायद आज भी जिसे ये पागल-सा दिल कुबुल नहीं कर पाया है,
आज उन्हीं टूटे हुए अरमानों को लिख रहा हूं,
आज फिर अपना अधूरा ख्यालात लिख रहा हूं…
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imkeshavsawarn |Manish Kumar
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