सच्चाई

आज फिर मैंने उसे पिटते देखा था, मदद की उम्मीद में नजरों को दौड़ाते देखा था, दर्द से डूबी आवाज को कड़ाहते देखा था, पंद्रह- बीस हट्टे – कठ्ठे नौजवानों को लाचार सा दर्शक बनते देखा था, किसी बलशाली को अपना बाहुबल किसी लाचार पर बरसाते देखा था, और उसी सड़क के किनारे से उसContinue reading “सच्चाई”